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हिमाचल शिक्षा बोर्ड को मेरी सलाह बोर्ड सचिव प्रमोद शर्मा एक भले व्यक्तित्व के मालिक हैं. आजकल बोर्ड की कार्य पर्नाली को सुधारने हेतु हर जिला में जा जा के जिस तरह वो अध्यापकों से सुझाव मांग रहे हैं वो अपने आप में तारीफे काबिल है.नाहन में आयोजित इस कार्यशाला में मैं भी उपस्थित था.चूँकि शिक्षा विभ्हाग की सबसे युवा पीड़ी का सदस्य होने के कारण मेरी पीड़ी को अभी २८-३० साल और इस विभ्हाग में सेवा देनी है इसलिए मेरी पीड़ी के कंधो पर सरकारी स्कूलों को निजीकरण से बचाने और अगली पीड़ी को सोंपने का दोहरा भार है.अपना फर्ज निभा मैंने भी कुछ सुझाव दे डाले. १. शिक्षा निति मैं चल रहे पांचसितारा होटलनुमा प्रयोगों के इस जमाने मैं जब सभी दांचा गत संसथाएं बसे बसाये शिक्षा दांचे को नष्ट करने पे तुली हुयी हैं ,मेरी राये हैं की सभी बोर्ड परीक्षायों को ख़तम कर सतत एवं समग्र मूल्यांकन पध्त्ति पर आगे बड़ा जाये.इसलिए नहीं की ये बेहतरीन है बल्कि इसलिए की अगर सब कुछ बर्बाद ही करना है तो डंग से बर्बाद करो.या फिर वर्तमान शिक्षण पध्त्ति जिस से हम सब निकले हैं उसे बरकरार रखते हुए पांचवीं , आठवीं , दसवीं ,ग्याहरवीं और बाहरवीं की बोर्ड की परीक्षायों पुनह बहाल की जाएँ.समग्र एवं सतत मूल्याङ्कन पद्धति कोई बुरी चीज नहीं परन्तु फिलहाल अवाय्व्हारिक है.एक सर्वेक्षण करवाया जाये. अगर इस प्रदेश का एक प्रतिशत शिक्षक भी ये कहे की इससे शिक्षा एवं छात्रों का भला हो रहा है तो इसे जारी रखा जाये वरना इसे बन्द किया जाये.वैसे भी दोहरी शिक्षण वयवस्था के कारण जब छात्रों के समसामयिक, सामाजिक और अधयाप्नीय परिवेशों में महासागरीय अंतर है उन सब को एक डिग्री या पर्मान पत्र के लिए एक ही आरंभिक बिंदु पे खड़ा करना अमानवीय ,अतार्किक और घृणित है. २.संकाय वयवस्था को समाप्त कर अब छात्रों को अपनी मर्जी के विषय पड़ने दिए जाना चाहिए. अगर कोई छात्र भौतिक विज्ञानं के साथ संगीत अथवा भूगोल पड़ना चाहता है तो नॉन मेडिकल के नाम पे उसे रसायन विज्ञान जबरदस्ती न पदवाया जाए. वैसे भी अब इंजिनियर और डॉक्टर बन्ने के दिन गुजर गए. अब हजारों नयी केरियेर विकल्प हैं.नई मंजिले हैं.नए आयाम हैं . संकाय वयवस्था शिक्षण व्यवस्था को खोलती नहीं बल्कि एक बिंदु पर केन्द्रित करती है. अब खुलने का वक्त है.पर फैलाने का वक्त.वरना किसी शायर का ख्याल की " बचों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो , चार किताबें पद के ये भी हमसे हो जायेंगे .." कभी नहीं बदलेगा. ३. शिक्षकों के पास गिन के १८० कार्य दिवस हैं.उनमे भी चुनाव, जनसंख्या,वोटर लिस्ट, पोलेओ,खेल और बेतरतीब कयाशालायें के कारण अध्याप्नीय कार्य अवधि घट जाती है.उपर से शिक्षा विभाग के आदेश की अगर परीक्षा परिणाम कम आया तो वेतन वृधि रुक जाएगी . ऐसी परिस्थितियों में नक़ल माफिया और फलेगा फुल्लेगा.इमानदार शिक्षकों का कार्य करना पहले से ही मुश्किल है अब भस्मासुरी होगा . ४. किसी भी निति को जमीनी स्तर पे उतारने मैं सबसे महत्वपूर्ण इकाई, धरातल स्तर पे कार्य करने वाले लोग होते हैं.वर्तमान संदर्भ मैं वो इकाई अध्यापक हैं.समस्या ये है की नीतियाँ बनाने से पहले इस इकाई से कभी भी सुझाव नहीं मांगे जाते . अंग्रेजों के ज़माने से थूपा थापी अनवरत जारी है. इसी कारण आरंभिक शिक्षा लगभग बर्बाद हो चुकी है और अब बारी माध्यमिक शिक्षा की है .नीतिगत फैसलों के बारे मैं मेरी राये है की क्यूँ न अपनी प्रशासनिक शक्तियों के मद मैं उत्पन हुयी अविवेकता को छोड़ एक बार इमानदारी से अध्यापकों के वास्तविक धरातल की जमीन की पमायीश इमानदारी से कर ली जाये. जाने माने शिक्षक " शिव खेडा " अपनी विश्व विख्यात पुस्तक " आजादी से जियें " मैं लिखते हैं " हमे रक्षा उसकी नहीं करनी है जो हमे विरासत में मिला है , हमें रक्षा उसकी करनी है जो हमें अगली पीदियों के लिए छोड़ के जाना है..."
Sachin Thakur, Ex State web Secretary, Himachal Pradesh School Lecturer Association. Lecturer in Physics, GSSS Surla, Distt.-Sirmour,HP 9418201289
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Sometimes people carry to such perfection the mask they have assumed that in due course they actually become the person they seem.
W. Somerset Maugham (1874-1965)
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